आपकी देह के अंत:स्थल में प्रभु को पहचानो : पं. व्यास

  • सेक्टर 9 में श्रीमद्भागवत मर्मज्ञ पं. गोपालकृष्ण व्यास का श्रीमद् भागवत पर कथा प्रवचन
उदयपुर के सेक्टर 9 में साप्ताहिक श्रीमदभागवत कथा ज्ञान यज्ञ का शुभारम्भ धूमधाम से हुआ। व्यास पीठ से मेवाड़ राजघराने से जुड़े कथावचक पंडित गोपालकृष्ण व्यास नें कहा कि जिसका जन्म हुआ है उसकी मृत्यु निश्चित है। एक न एक दिन सभी को मृत्यु का वरण करना ही है। यह जानते हुए भी कि ईश्वर की सर्वोत्कृष्ट कृति मानव काम, क्रोध, लोभ, मोह, धन, ऐश्वर्य, संपन्नता, वैभव, ईर्ष्या, द्वेष में डूबा हुआ है, जो सर्वथा झूठ है, मिथ्या है। जो एकत्र किया है वह सब यही रह जाना है, जो दिया अर्थात किसी की मदद की है, पुण्य किया है वही आत्मा को पवित्र कर मोक्ष का मार्ग प्रशस्त करता है। उन्होंने कहा धर्म को समझने की जरूरत है। इसलिए इंसान को प्रभु के निकट जाना होगा, प्रभु की महिमा को समझ कर उसे पाने का प्रयत्न करना होगा। क्या प्रभु को किसी ने देखा है, नहीं। किंतु आस्थावान देवस्थलों में जाकर प्रभु को ढूंढते हैं, अच्छी बात है, प्रयास होता रहना चाहिए। लेकिन मानव यह भूल रहा है कि प्रभु और कहीं नहीं उसकी देह के अंत:स्थल में ही विराजमान है। बस जरूरत है तो उसे पहचानने की, उसकी भक्ति में डूबने की। इसके लिए त्याग, तपस्या और शुद्ध विचारों की आवश्यकता है। आपको बता दें कि श्रीमद् भागवत मर्मज्ञ संस्कृति पंडित श्री गोपालकृष्ण व्यास सूरत के रहवासी है, जो उदयपुर के मूल निवासी हैं। उन्होंने सेक्टर 9 स्थित भव्य पंडाल में नौ दिवसीय श्रीमद् भागवत महापुराण ज्ञान यज्ञ के तीसरे दिन भक्तों, धर्मावलंबियों को यथार्थ का ज्ञान कराते हुए यह व्याख्यान दिया। उन्होंने कहा कि आज मानव जो भ्रम पाले हुए हैं कि वह सब कुछ है, सब कुछ उसके हाथ में है, परन्तु नहीं, वह भूल जाता है कि वह इस नश्वर संसार में जन्म के समय ही मृत्यु को साथ लेकर पैदा हुआ है। इस भ्रम को दूर करने के लिए उसे अपनी बुद्धि का इस्तेमाल करना होगा। किंतु बुद्धि भी तीन प्रकार की होती है, निर्मल, मलिन और अमल। बुद्धि निर्मल यानी शुद्ध, मलिन यानी विकृत और अमल यानी इन दोनों स्तर से ऊपर। अर्थात अमल प्रकार की बुद्धि भगवद भक्ति, प्रभु को पाने के लिए उत्तम और उपयुक्त है। बुद्धि के इस स्तर को प्राप्त करने के लिए मानव को हमारे उन कृष्ण द्वैपायन वेदव्यास, सूतजी, शौनकजी, नारदजी इत्यादि देवत्व प्राप्त ऋषि मुनियों से प्रेरणा लेने की जरूरत है, जिन्होंने वेद, पुराण, उपनिषद की रचना की है। कथा के आयोजक श्रीमती सरला शर्मा, उनके पुत्र आलोकशेखर शर्मा, आरोग्यशेखर शर्मा और उनका परिवार है। आरोग्य शेखर ने बताया कि उनकी मातुश्री श्रीमती सरला शर्मा का बरसों का संकल्प था कि वे एक बार सर्वजन हिताय श्रीमद् भागवत ज्ञान यज्ञ अनुष्ठान का आयोजन करें। वहीं संकल्प अब जाकर पूरा हुआ है।

300 साल से मेवाड़ राजघराने से जुड़कर कर कर रहे है भागवत कथा

संक्षिप्त मुलाकात में पं. व्यास ने बताया कि उनका कुटुंब करीब 300 साल से मेवाड़ राजघराने से संबद्ध हैं। उनके पुरखे 15 पीढ़ियों से राजमहल और जगदीश मंदिर में श्रीमद भागवत कथा प्रवचन करते आ रहे हैं। इसीलिए उन्हें कथाभट्ट के तौर पर राजघराने में पहचाना जाता था, और व्यास की उपाधि देकर व्यासपीठ पर आरूढ़ किया था। वे बनारस काशी विश्व विद्यालय से स्नातक हैं। दसवीं तक उदयपुर में अध्ययन करने के बाद वे काशी चले गए और वहां छह साल तक संस्कृति विषय लेकर अध्ययन किया। फिर पुन: अपने गृह क्षेत्र का रुख किया और उदयपुर आने के बाद गुजरात के सूरत के पास बारडोली को अपनी कर्मस्थली बनाया। धीरे धीरे वे श्रीमद भागवत की कथा करने लगे और बाद मे विदेशों में आमंत्रण पर कथा करने जाने लगे। वे दिल्ली, वृंदावन, काशी, उदयपुर, चित्तौड़, अहमदाबाद, बारडोली, सूरत, मुंबई, इंदौर आदि शहरों के साथ विदेश यथा अमेरिका, ब्रिटेन, कनाडा, पनामा, स्विट्जरलैंड इत्यादि के विभिन्न शहरों में भी कथा कर चुके हैं। कथा प्रवचन उन्हें विरासत में मिला है।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *